पटाक्षेप
... अब आगेअगले दिन...
"सुर चाय लए आपका",सुमन ने राकेश जी को देखते ही कहा
"हाँ लाओ"
सुमन चाय लाने चली गयी करीब पंद्रह मिनट बाद चाय ले आई
"सुर कुछ बात हुई मेरे मामले में", सुमन ने धीरे से पुछा
"हं एक जगह बात हुई थी समझ लो अपना ही घर है, पर एक प्रॉब्लम है"
"प्रॉब्लम सुर कैसी प्रॉब्लम ?"
"मेरा एक दोस्त है उससे बात हुई थी लेकिन वो कह रहा था पहले तुम्हारे आदमी से बात करेगा, बिना उसकी जानकारी के नहीं हो सकता"
"अब सर ये बताइये, अगर उसको मालूम हो जायेगा तो क्या वो जाने देगा वो तो यही चाहता है की हमको वो मारे काटे और हम वही पड़े रहे लेकिन एक बात बताइये सर हम अपनी आँख के सामने अपनी चारपाई पर उसकी भाभी को सोने दे? कोई बात नहीं सर हम खुद भी ज़हर खा लेंगे और पप्पू(छोटा बेटा) को भी ज़हर चटा देंगे" रोती हुई सुमन बहार निकल गयी
राकेश जी ऊहापोह में घिर गए फिर से उन्होने अपने मित्र द्धिवेदी से बात करी खूब समझाया बुझाया कहा वो सब समझ रहे है अंततः द्धिवेदी तैयार हो गए उन्होने अपना चपरासी राकेश जी के घर भेज दिया सुमन को ले आने सुमन भी अपने बच्चे के साथ मय सामान राकेश जी के घर आए गयी
राकेश जी की पत्नी ने रास्ते का खाने पीने का सामान और अलग से ५०० रुपये सुमन के हाथ में रख दिए पति पत्नी खुश थे चलो किसी का तो भला हुआ
लेकिन आज ये पुलिस...
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राकेश जी ने सोचा अब जब ये बात हो ही गयी है और जब पुलिस इंस्टिट्यूट तक आ ही गयी है तो बात को छिपाना ठीक नहीं
"सर क्या मैं अंदर आ सकता हूँ" राकेश जी अगले ही क्षण प्रिंसिपल साहब के कमरे के सामने पहुंच चुके थे
"हाँ हाँ आइये राकेश जी"
'सर बात ये है की मुझे आज पता चला की पुलिस आई थी"
"हाँ अपने यहाँ जो सुमन थी काम करने वाली, वो एक महीने से गायब है उसके हस्बैंड ने पुलिस में कम्प्लेन कर दी थी उसी मामले में पुलिस आई थी"
"नहींए सर सुमन गायब नहीं हुई है"
"मतलब?"
"मतलब सर मैने अपने दोस्त द्धिवेदी जी के यहां उसे काम पर लगाया है"
"राकेश जी आपने! अरे मुझसे भी आपने नहीं बताया सर शादी शुदा स्त्री है बहुत गलत काम हो गया है देखिये थाना कचहरी भी शुरू होगया है और भी न जाने क्या क्या होगा!"
"हाँ सर गलती तो हो ही गयी है, असल में वो इतना दुखी थी और इतना रो रही थी की मन नहीं माना और उससे काम पर लगा दिया"
"हूँ"
"लेकिन सर आप परेशान मत होइए मैं उससे द्धिवेदी के घर से बुलावा दूंगा"
"लेकिन राकेश जी पहले चलिए चलते है थाने चल कर सारी जानकारी दे आते हैं"
"नहीं नहीं, आप परेशान मत होइए सर मैं खुद थाने जा कर सारी बात बता कर आता हूँ" कहते हुए राकेश जी उठे और कमरे से बाहर आ गए
घंटे भर के अंदर राकेश जी ने थाने जा कर एस ओ को सारी बात से अवगत करा दिया एस ओ ने तुरंत सुमन के पति को थाने बुला कर सारी बात उसके सामने रख दी उसका रोता हुआ चेहरा देख कर राकेश जी ग्लानी से भर गए हे भगवान! ये मैने क्या कर दिया
पछतावे ग्लानि और इसी ऊहापोह में डूबे हुए राकेश जी थाने से सीधे घर आ गए घर में बैठ कर इसी घटना के बारे में देर तक सोचते रहे
अगले दिन राकेश जी रास्ते में ही थे की मोबाइल की घंटी बजी
"हेलो, राकेश हिअर"
"सर जी हम सुमन के हसबैंड बोल रहे है हम जहा काम करते है हमारे मालिक आपसे बात करना चाहते है" सुमन का आदमी लाइन पर था
"हाँ राकेश जी मैं पंकज बोल रहा हूँ"
"हाँ पंकज जी"
"अरे ये बताओ इसकी बीबी बच्चों को कहा भेज दिया है" आवाज़ की तल्खी साफ़ झलक रही थी
"नहीं कही भेजा नहीं है, अपने फ्रेंड के घर काम पर लगवा दिया है" राकेश जी ने धीमे से कहा
"उसके हसबैंड से पुछा या बताया था अपने?"
"नहीं वो कह रही थी उसके आदमी ने उसे निकाल दिया है, बहुत रो रही थी बेचारी..."
"रो रही थी मतलब? आप किसी की औरत को ऐसे ही भेज देंगे फँस सकते है आप जनाब और आपके फ्रेंड भी"
"देखिये मुझे क्या पता था बहुत रो रही थी कह रही थी की ज़हर खा लेगी, तरस खा कर..."
"अच्छा छोड़िये,ये बताइये वो कब तक आ जाएगी" पंकज ने बात काडते हुए कहा
"जल्दी से जल्दी आ जाएगी"
"जल्दी मतलब कितने दिन में"
"बस, दो तीन दिन में"
"ठीक है" और उधर से फ़ोन कट गया
अगले तीन दिन राकेश जी के परेशानी में बीते
रोज़ सुमन के आदमी के मालिक पंकज का फ़ोन
राकेश जी बेचारे सीधे सादे कोई भी हड़का ले द्धिवेदी भी बहुत नाराज़ हुए खैर सबकी नाराज़गी झेलते हुए राकेश जी ने किसिस तरह तीन दिन काटे द्धिवेदी जी के चपरासी के साथ सुमन आ गयी राकेश जी सीधे उसे थाने ले गए और एस ओ के सुपुर्द कर दिया एस ओ ने तुरंत उसके आदमी को फ़ोन लगाया थोड़ी देर राकेश जी बैठे रहे जब देर ज़्यादा होने लगी तो एस ओ ने उनसे कहा की वे जाये रुक कर क्या करेंगे रकेश जी ने भी चैन की सांस ली लगा जैसे मनो बोझ गया छाती से उत्तर गया हो घर आ कर फिर से दुनियादारी की कसमे खाने लगे
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उस रात...
"...आज आप बचेंगे नहीं" सुमन ने आगे बढ़ते हुए कहा पंकज जी एक कदम पीछे हट गए फिर दोनों हसने लगे
"बचना कौन चाहता है सुमन रानी" कहते हुए पंकज जी ने सुमन को अपने आलिंगन पाश में बाांध लिया और अपने जलते हुए होंठ उसके होंठ पर रख दिए पंकज जी के बेचैन और उत्सुक हाथ उसकी गहराइयों और गोलाइयों को नापने लगे
"अरे इतनी ही बेचैनी थी तो डांटा क्यों था" सुमन ने कसमसाते हुए कहा
"तुम्ही तो बार बार ज़िद कर रही थी"
"ज़िद कैसी पांच हज़ार में खाना और बिस्तर दोनों गरम नहीं मिलेगा डुबकी लगना चाहते है तो सोने की चैन दिलवाइए नहीं तो इस बार भागे तो आएंगे नहीं"
"तुम भी न बिना बताये गायब हो जाती हो तुम्हारे आदमी से पुलिस में कंप्लेंट करनी पड़ी उस राकेश के पीछे पड़ना पड़ा,झेल दिया सुमन रानी तुमने"
"और मेरे आते ही आपने मेरे आदमी का टूर लगा दिया आप भी कसम से काम नहीं हो सर जी राकेश सर तो आपके सामने बच्चे है"
"पर मैं तो बच्चा नहीं हूँ..." कहते हुए पंकज जी सुमन पर छा गए सिसकियों, सिस्कारियों और गहरी साँसों के बीच पलंग कभी कभी आवाज़कर बैठती थी
...उधर राकेश जी बहुत खुश थे
"चलो मामले का पटाक्षेप तो हुआ परिवार एक हो गया पति पत्नी बच्चे सब मिल गए कल सवा पाव का प्रशाद चढ़ाऊंगा"
और धीरे धीरे नींद के आगोश में चले गए
समाप्त