Thursday 16 October 2014

पटाक्षेप 
... अब आगे

अगले दिन...
"सुर चाय लए आपका",सुमन ने राकेश जी को देखते ही कहा
"हाँ लाओ"
सुमन चाय लाने चली गयी करीब पंद्रह मिनट बाद चाय ले आई
"सुर कुछ बात हुई मेरे मामले में", सुमन ने धीरे से पुछा
"हं एक जगह बात हुई थी समझ लो अपना ही घर है, पर एक प्रॉब्लम है"
"प्रॉब्लम  सुर कैसी प्रॉब्लम ?"
"मेरा एक दोस्त है उससे बात हुई थी लेकिन वो कह रहा था पहले तुम्हारे आदमी से बात करेगा, बिना उसकी जानकारी के नहीं हो सकता"
"अब सर ये बताइये, अगर उसको मालूम हो जायेगा तो क्या वो जाने देगा वो तो यही चाहता है की हमको वो मारे काटे और हम वही पड़े रहे लेकिन एक बात बताइये सर हम अपनी आँख के सामने अपनी चारपाई पर उसकी भाभी को सोने दे? कोई बात नहीं सर हम खुद भी ज़हर खा लेंगे और पप्पू(छोटा बेटा) को भी ज़हर चटा देंगे" रोती हुई सुमन बहार निकल गयी
राकेश जी ऊहापोह में घिर गए फिर से उन्होने अपने मित्र द्धिवेदी से बात करी खूब समझाया बुझाया कहा वो सब समझ रहे है अंततः द्धिवेदी तैयार हो गए उन्होने अपना चपरासी राकेश जी के घर भेज दिया सुमन को ले आने सुमन भी अपने बच्चे के साथ मय सामान राकेश जी के घर आए गयी
राकेश जी की पत्नी ने रास्ते का खाने पीने का सामान और अलग से ५०० रुपये सुमन के हाथ में रख दिए पति पत्नी खुश थे चलो किसी का तो भला हुआ
लेकिन आज ये पुलिस...
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राकेश जी ने सोचा अब जब ये बात हो ही गयी है और जब पुलिस इंस्टिट्यूट तक आ ही गयी है तो बात को छिपाना ठीक नहीं
"सर क्या मैं अंदर आ सकता हूँ" राकेश जी अगले ही क्षण प्रिंसिपल साहब के कमरे के सामने पहुंच चुके थे
"हाँ हाँ आइये राकेश जी"
'सर बात ये है की मुझे आज पता चला की पुलिस आई थी"
"हाँ अपने यहाँ जो सुमन थी काम करने वाली, वो एक महीने से गायब है उसके हस्बैंड ने पुलिस में कम्प्लेन कर दी थी उसी मामले में पुलिस आई थी"
"नहींए सर सुमन गायब नहीं हुई है"
"मतलब?"
"मतलब सर मैने अपने दोस्त द्धिवेदी जी के यहां उसे  काम पर लगाया है"
"राकेश जी आपने! अरे मुझसे भी आपने नहीं बताया सर शादी शुदा स्त्री है बहुत गलत काम हो गया है देखिये थाना कचहरी भी शुरू होगया है और भी न जाने क्या क्या होगा!"
"हाँ सर गलती तो हो ही गयी है, असल में वो इतना दुखी थी और इतना रो रही थी की मन नहीं माना और उससे काम पर लगा दिया"
"हूँ"
"लेकिन सर आप परेशान मत होइए मैं उससे द्धिवेदी के घर से बुलावा दूंगा"
"लेकिन राकेश जी पहले चलिए चलते है थाने चल कर सारी जानकारी दे आते हैं"
"नहीं नहीं, आप परेशान मत होइए सर मैं खुद थाने जा कर सारी बात बता कर आता हूँ" कहते हुए राकेश जी उठे और कमरे से बाहर आ गए
घंटे भर के अंदर राकेश जी ने थाने जा कर एस ओ  को सारी बात से अवगत करा दिया एस ओ  ने तुरंत सुमन के पति को थाने बुला कर सारी बात उसके सामने रख दी उसका रोता हुआ चेहरा देख कर राकेश जी ग्लानी से भर गए हे भगवान! ये मैने क्या कर दिया
पछतावे ग्लानि और इसी ऊहापोह में डूबे हुए राकेश जी थाने से सीधे घर आ गए घर में बैठ कर इसी घटना के बारे में देर तक सोचते रहे
अगले दिन राकेश जी रास्ते में ही थे की मोबाइल की घंटी बजी
"हेलो, राकेश हिअर"
"सर जी हम सुमन के हसबैंड बोल  रहे  है हम जहा  काम करते  है हमारे  मालिक  आपसे बात करना चाहते है" सुमन का आदमी लाइन पर था
"हाँ राकेश जी मैं पंकज बोल रहा हूँ"
"हाँ पंकज जी"
"अरे ये बताओ इसकी बीबी बच्चों को कहा भेज दिया है" आवाज़  की तल्खी  साफ़ झलक रही थी
"नहीं कही भेजा नहीं है, अपने फ्रेंड के घर काम पर लगवा दिया है" राकेश जी ने धीमे से कहा
"उसके हसबैंड से पुछा या बताया था अपने?"
"नहीं वो कह रही थी उसके आदमी ने उसे निकाल दिया है, बहुत रो रही थी बेचारी..."
"रो रही थी मतलब? आप किसी की औरत को ऐसे ही भेज देंगे फँस सकते है आप जनाब और आपके फ्रेंड भी"
"देखिये मुझे क्या पता था बहुत रो रही थी कह रही थी की ज़हर खा लेगी, तरस खा कर..."
"अच्छा छोड़िये,ये बताइये वो कब तक आ जाएगी" पंकज ने बात काडते हुए कहा
"जल्दी से जल्दी आ जाएगी"
"जल्दी मतलब कितने दिन में"
"बस, दो तीन दिन में"
"ठीक है" और उधर से फ़ोन कट गया
अगले तीन दिन राकेश जी के परेशानी में बीते
रोज़ सुमन के आदमी के मालिक पंकज का फ़ोन
राकेश जी बेचारे सीधे सादे  कोई भी हड़का ले द्धिवेदी भी बहुत नाराज़ हुए खैर सबकी नाराज़गी झेलते हुए राकेश जी ने किसिस तरह तीन दिन काटे द्धिवेदी जी के चपरासी के साथ सुमन आ गयी राकेश जी सीधे उसे थाने ले गए और एस ओ के सुपुर्द कर दिया एस ओ ने तुरंत उसके आदमी को फ़ोन लगाया थोड़ी देर राकेश जी बैठे रहे जब देर ज़्यादा होने लगी तो एस ओ ने उनसे कहा की वे जाये रुक कर क्या करेंगे रकेश जी ने भी चैन की सांस ली लगा जैसे मनो बोझ गया  छाती से उत्तर गया हो घर आ कर फिर से दुनियादारी की कसमे खाने लगे
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उस रात...
"...आज आप बचेंगे नहीं" सुमन ने आगे बढ़ते हुए कहा पंकज जी एक कदम पीछे हट गए फिर दोनों हसने लगे
"बचना कौन चाहता है सुमन रानी" कहते हुए पंकज जी ने सुमन को अपने आलिंगन पाश में बाांध लिया  और अपने जलते हुए होंठ उसके होंठ पर रख दिए पंकज जी के बेचैन  और उत्सुक हाथ उसकी गहराइयों और गोलाइयों को नापने लगे
"अरे इतनी ही बेचैनी थी तो डांटा क्यों था" सुमन ने कसमसाते हुए कहा
"तुम्ही तो बार बार ज़िद कर रही थी"
"ज़िद कैसी पांच हज़ार में खाना और बिस्तर दोनों गरम नहीं मिलेगा डुबकी लगना चाहते है तो सोने की चैन दिलवाइए नहीं तो इस बार भागे तो आएंगे नहीं"
"तुम भी न बिना बताये गायब हो जाती हो तुम्हारे आदमी  से पुलिस में कंप्लेंट करनी पड़ी उस राकेश के पीछे पड़ना  पड़ा,झेल दिया सुमन रानी तुमने"
"और मेरे आते ही आपने मेरे आदमी का टूर लगा दिया आप भी कसम से काम नहीं हो सर जी राकेश सर तो आपके सामने बच्चे है"
"पर मैं तो बच्चा नहीं हूँ..." कहते हुए पंकज जी सुमन पर छा गए सिसकियों, सिस्कारियों और गहरी साँसों के बीच पलंग कभी कभी आवाज़कर बैठती थी
...उधर  राकेश जी बहुत खुश थे
"चलो मामले का पटाक्षेप तो हुआ परिवार एक हो गया पति पत्नी बच्चे सब मिल गए कल सवा पाव का प्रशाद चढ़ाऊंगा"
 और धीरे धीरे नींद के आगोश में चले गए

समाप्त 


Wednesday 15 October 2014

पटाक्षेप

खट खट-
खट खट-
दरवाज़े पर धीरे धीरे कोई खटखटा रहा था पंकज जी बेड पर लेते हुए थे उठ कर पाँव में चप्पल डाली सिटकनी सरकाई और दरवाज़े को खोल दिया
"ये क्या!' अचानक पंकज जी के मुँह से निकला
सामने सुमन खड़ी थी लंबा कद, कसा हुआ बदन, गोरा रंग, साड़ी घुटने तक आ रही थी, हमेशा की तरह कमर में खोंस लेने के कारण सीने को साड़ी से कस कर ढँक कर पीछे खोंस लिया था गहरी सांस लेने के कारण सीने पर अजीब सी हलचल थी लाल आँखे और हाथ में तेज़ धार वाला हंसिया सुमन ने आगे बढ़ कर हंसिया पंकज जी के गले पर रख दिया
"आज आप बँचेगे नहीं" सुमन ने आगे बढ़ते हुए कहा
पंकज जी एक कदम पीछे हट गए
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महीना भर पहले...
"अरे आज कल पुलिस वाले भी एडमिशन लेने लगे हैं, क्या" वाहिद ने हँसते हुए कहा
सूरज प्रसाद वोकेशनल इन्स्टीटूट में इस समय कई क्लासेस चल रही थी एडमिशन आदि भी चल रहे थे वाहिद अभी अभी क्लास ले कर स्टाफ रूम में आया था हमेशा मज़ाक के मूड में रहता था
"अरे भाई, किसी का गार्डियन होगा या किसी के साथ आया होगा", राकेश जी ने कहा राकेश जी भी अभी क्लास ले कर आये थे
आधे घंटे का लंच था उसके बाद ही क्लास थी
"अरे कुछ पता चला! सुमन को ढूंढते हुए पुलिस आई थी पता है महीने भर से गायब है" ललित जी उत्सुक्ता और हैरानी से भरे थे
"गायब है कहाँ कैसे!" राकेश जी के शब्दों में हैरानी कम और घबराहट ज़्यादा थी
"हाँ हाँ, उसका आदमी भी साथ था" ललित जी ने खुलासा किया
"अच्छा" कहते हुए राकेश जी बाहर निकल गए उनके चेहरे की रंगत बदल चुकी थी अभी क्लास शुरू होने में पंद्रह मिनट थे इस घटना ने उन्हे परेशान कर दिया था जाकर क्लास में बैठ गए गायब हो गयी ये बात कहाँ से आ गयी और पुलिस पुलिस केस कैसे हो गया दूर दूर तक ऐसा अंदेशा नहीं था जब पति से छुट्टा छुट्टी हो गयी थी, तो अब क्यों हरामी... ने पुलिस में कम्प्लेन कर दी राकेश जी विचारों में खोये हुए थे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था अभी हाल की तो बात थी...
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"सर मैं बहुत परेशान हूँ" सुमन ने पानी का गिलास रखते हुए कहा
"क्या परेशानी है, पैसा नहीं मिला क्या अभी", राकेश जी मज़ाक के मूड में थे
"नहीं सर, आदमी के साथ परेशानी है बहुत हरामी पीस है सर..." सुमन गुस्से में कम, परेशान ज़्यादा थी
"हाँ, हाँ" राकेश जी ने बात काटते हुए कहा, "गाली-गलौज नहीं ये पढ़ाई-लिखाई की जगह है यहां गंदी बातों का यूज़ मत करो", राकेश जी ने समझाया
"सोआरी सर बात ये है सर की हम बहुत परेशान है रोज़ डेली हमारे साथ मार-पीट करता था हर समय गंदी गंदी गाली देता था कहता था बाहर निकल जाओ अब बताइये सर, एक छोटा सा लड़का है उसे लेकर कहाँ जाऊं" सुमन ने रुंआसी आवाज़ में कहा
"हाँ" राकेश जी कुर्सी पर सीधे होते हुए बोले, "फिर"
"फिर क्या सर कहता है अपने भी ज़हर खालो और इसको भी ज़हर दे दो हरामी साला...सोआरी सर, गलती हो गयी, क्या करे सर परेशान है ना सर" सुमन ने बात को साधते हुए कहा
"हाँ हाँ, समझ सकता हूँ, एकदम कसाई है" राकेश जी ने सांत्वना देते हुए कहा
"अरे सर पूरा कसाई है" सुमन ने इधर उधर देखा और राकेश जी की तरफ झुकते हुए धीमे से बोली, "सर असली बात ये है की उसका अपनी भाभी से लफड़ा चल रहा है हमको हटाने का सारा पलान है"
"तो अब क्या चल रहा है?" राकेश जी भी उसके तरफ झुक  गए
"चलेगा क्या सर पंद्रह दिन पहले खूब मार-पीट हुई थी हमने भी खूब फायर किया था घर छोड़ दिया साले का, हरामी... सोआरी सर अब अपने भाई के यहाँ रह रहे है झांकने नहीं जाएंगे उसके घर अपने बल पर लड़के को बड़ा करेंगे जब बड़ा हो जायेगा ना सर, तो हमारा पाप कटेगा" कहते कहते सुमन ने अपना सर घुटने  में छुपा लिया
"रो नहीं सुमन चुप हो जाओ कुछ न कुछ जरूर करेंगे तुम्हारे लिए" राकेश जी ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा
"सर अगर कहीं हो सके तो हमारा काम लगवा दीजिये चौका बर्तन चूल्हा हम सब कर लेते है झाड़ू पोंछा हम सब अच्छे से कर लेते है बस कही ठौरी की जगह मिल जाए न सर तो अच्छा रहे पलीज़ सर कही हो तो देखियेगा" सुमन ने धीमी आवाज़ में कहा
"अच्छा देखेंगे चलो", राकेश जी ने टालने के अंदाज़ में कहा
"एक बात और सर जी किसी से बताइयेगा मत सर जी अगर उसको मालुम हो गया ना तो हमारे पीछे पड़ जाएगा एक बात और सर जी", सुमन ने फिर राकेश जी की तरफ झुकते हुए धीमी आवाज़ में कहा,"अगर हो सके तो सर जी इस शहर से बाहर कहीं लगवा दीजिये सर जी"
"अच्छा" कहते हुए राकेश जी चल दिए राकेश जी एक सीधे सादे सहृदय व्यक्ति थे ज़्यादा लाग-लपेट इधर-उधर में नहीं रहते थे सबके दर्द में शामिल होना सबकी सहायता करना उनकी अादत में शुमार था जब कहीं धोख़ा खाते तो कसम लेते थे की बस अब नहीं अब दुनियादारी दिखाऊंगा एक एक को लाइन पर ला दूंगा वगैरह वगैरह...लेकिन जैसे ही कोई सहायता की गुहार लगाता लग जाते थे उसके साथ इस समय राकेश जी को ये धुन लग गयी थी की किसी तरह से सुमन को कही लगवा दें बेचारी अबला है परेशान है छोटा सा बच्चा है कहा जाएगी अकेली औरत मतलब परेशान जान हर एक  की लार टपकती रहती है सभी   सौदागर बन जाते हैं और कही फिर जहर खा ले तो...नहीं नहीं राम राम ऐसा नहीं होने दूंगा राकेश जी इसी उधेड़ बुन में लग गए अचानक कुछ सोचा और मोबाइल उठा कर नंबर डायल करने लगे
"हेलो कौन द्धिवेदी" राकेश जी ने फ़ोन उठते ही कहा
"कौन राकेश, बोल यार कैसा है क्या चल रहा है भाभी और बच्चे..." द्धिवेदी ने तो उत्सुक्ता का खज़ाना खोल दिया
"सब ठीक है यार, मैने एक ख़ास मक़सद से तुझे फ़ोन  किया था यार" राकेश जी ने कहा
"हाँ हाँ बोल"
"बात ये है द्धिवेदी, तुमने पिछले हफ्ते एक काम वाली के लिए कहा था"
"हाँ तो?'
"तो बात ये है एक औरत है, छोटा बच्चा है, मेरे पास काम ढूंढने आई थी"
"क्यों यार, कोई काम वाला ब्यूरो खोल लिया है क्या"द्धिवेदी ने हँसते हुए कहा
"नहीं यार, जहाँ पढ़ता हूँ वहाँ आया का काम करती है"
"विडो है क्या?"
"नहीं यार, हस्बैंड ने बाहर निकाल दिया है"
"तो राकेश, बिना हस्बैंड की जानकारी के बहार भेजना ठीक नहीं रहेगा यार क्या कहते हो?"
"यार बात तो तुम्हारी सही है मैं बात कर लूँगा, और सब ठीक है ना? रखता हूँ, बाय?
                                                                                                                -क्रमशः